Tuesday, September 21, 2010

मंडोर उद्यान ,जोधपुर


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गंधी फूल गुलाब ज्यूँ, उर मुरधर उद्याण |
मीठा बोलण मानवी,जीवण सुख जोधांण ||

Monday, September 20, 2010

तीज के झूले


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हिंडो लूमै होड़ सूं, तीज तणो त्युंहार |
सखियां मारै कोरड़ा, पिव रो नाम पुकार ||

बाजरे के खेत



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चालो खेत सुवावणा, झिल्ली री झणकार |
बाजरियो झाला दिवै, मारगियो मनवार ||

लोक देवता गोगा जी

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भादरवै गोगा नमी, गोगाजी रै थान |
इण धर मेला नित भरे, गावै तेजो गान ||

डांडिया

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डंडिया नाच गुवाड़ में, हंडिया खरला साज |
रमणी गैरां मोद-मन, रामा सामा आज ||

गणगौर पूजन



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चेत सुमास बसंत रितु, घर जंगल सम चाव |
गोरी पूजै गौरडयां, बाँवल फोग बणाव ||

Sunday, September 19, 2010

केर सांगरी की सब्जी (पंचकुटा)


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कैर,कुमटिया सांगरी,
काचर बोर मतीर |
तीनूं लोकां नह मिलै,
तरसै देव अखीर ||

कैर,कुमटिया,सांगरी,काचर,बेर और मतीरे राजस्थान को छोड़कर तीनों लोकों में दुर्लभ है इनके लिए तो देवता भी तरसतें रहते है |

महफ़िल


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दारु पीवो रंग रमों, राता राखो नेण

धोरों पर मस्ती


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छलांग सिर्फ पानी में ही नहीं लगाई जाती धारों की बालू रेत में भी लगाई जा सकती है

मेवाड़


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होतो नह मेवाड़ तौ,
होती नह हिंदवाण |
खान्ड़ो कदै न खडकतौ,
भारत छिपतो भाण ||

जूनागढ़ बीकानेर


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सूर,धनी, चंगों मनां-
व्हालो, नेह विसेस |
देस विदेसां जाणसी,
जांगल देस हमेस ||

घंटाघर : जोधपुर


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जौहर


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वो गढ़ नीचो किम झुकै,
ऊँचो जस-गिर वास |
हर झाटे जौहर जठै,
हर भाटे इतिहास ||

वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़



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रगत बहायौ रोसतां,
रंगी धर, फण सेस |
दिल्ली-जड़ ढिल्ली करी,
मारू मरुधर देस ||

Saturday, September 18, 2010

जाट राजा सूरजमल


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डिगीयौ नह गढ़ डीग रो,
तोपां ताव पड़ंत |
कोरां खांडी नीं हुई,
गोरां डिंग गलन्त ||

रैबारी


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श्रृंगार



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बिलोवना (घी निकलना )



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महाराव शेखाजी


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सूरां सतियाँ सेहरो,
शेखा धरती सान |
तो माटी में निपजै,
बढ़ बढ़ नर बलवान ||

Friday, September 17, 2010

हल्दी घाटी युद्ध






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वीर धरा रजथान री,
सूरां में सिर मोड़ |
हल्दी घाटी घाटियाँ,
गढ़ां सु गढ़ चितौड़ ||

हल्दी घाटी साख दे,
चेटक झाला पाण |
इण घाटी दिसै सदा,
माटी माटी राण ||

रणथम्भोर-दुर्ग



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रण रमियो,रण रोति सूं,
रणमल रणथम्भोर |
राख्यो हठ हमीर रौ,
कट-कट खागां कोर ||

चौपड़ : एक खेल


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खेतों में काम



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राजस्थानी शान


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Thursday, September 16, 2010



बल बंकौ रण बंकड़ो,
सूर-सती सिर मोड़ |
प्रण बंकौ प्रबली धरा,
चंगों गढ़ चितौड़ ||६६||
बल में बांका,रण-बांकुरा,शूरों व सतियों का सिर-मौर,वचनों की टेक रखने वाला तथा आंटीला चितौड़ दुर्ग ही सर्व-श्रेष्ठ है |

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जालौर-दुर्ग



सूरो गढ़ जालौर रो,
सूरां रौ सिंणगार |
अजै सुनीजै उण धरा,
वीरम दे हूंकार ||६८||
जालौर का यह वीर दुर्ग वीरों का श्रृंगार है | उसके कण-कण में आज भी विरमदेव की हूंकार सुनाई देती है |
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जैसलमेर- दुर्ग



पच्छिम दिस पहरी सदा,
गढ़ जैसाणों सेस |
अजै रुखालो सूरतां,
अजै रुखालो देस ||
जैसलमेर का यह दुर्ग सदा से ही पश्चिम दिशा का प्रहरी रहा है | यह दुर्ग आज भी वीरता की रखवाली करता हुआ देश की रक्षा कर रहा है |

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